एक वक़्त था जब टीवी पर प्रोग्राम के बीच ऐड आता था तो उसे देख कर मन उब जाया करता था. कभी कभी गुस्सा भी आता था. लेकिन अब वो बात नहीं रही. अब मजा आता है ऐड देखने में. पहले उबन का कारण ये था की एक तो एक ही ऐड महीनों चलता रहता था, नयापन था ही नहीं. दूसरे उसमें कुछ क्रियेटिविटी नहीं थी. लेकिन अब वो बात नहीं रही. अब ऐड में क्रियेटिविटी है. नयापन है. अब के ऐड ऐसे बनते हैं की उसमें उत्सुकता बनी रहती है. जब तक दर्शक उसका आनंद उठाते हैं, तब तक नये थीम पर दूसरा ऐड बन जाता है. आज के ऐड में प्रोडक्ट की जानकारी या विशेषता बताने के लिए वस्तुविशेष पर ही ध्यान केन्द्रित नहीं होता, बल्कि उसके साथ दर्शकों के मनोरंजन का भी ख्याल किया जाता है. दरअसल आज का दर्शक क्या चाहता है ये कंपनियां जान चुकी हैं. समय के साथ मार्केटिंग पॉलिसी बदली और दर्शकों को अपने प्रोडक्ट के प्रति लगाव बनाये रखने के लिए कंपनियों ने नए नए विकल्प निकल लिए. अब प्रोडक्ट की जानकारी ही नहीं दे जाती बल्कि दर्शकों का मनोरंजन भी किया जाता हैं. अब ऐड में भी मजा आता है. याद करिए वो पेंशन का वो ऐड जिसमें एक बुजुर्ग पिता अपने करीबन साठ साल के बेटे को ऐसे डांट रहा था जैसे की एक पिता अपने जवान बेटे को डांटता है.यही नहीं जूजू वाला ऐड याद है न और वो ३जी वाला ऐड जिसमें एक खटारा गाड़ी से चल रहा युवक के बगल से एक तेज रफ़्तार गाड़ी निकलती है. यही नहीं कई ऐड तो ऐसे बने है जिसमें आपको हंसी तो नहीं आएगी पर उसे देखने की उत्सुकता बनी रहेगी, जैसे लावा मोबाइल का एड जिसमें चेंज न होने पर काउंटर पर बैठी लड़की लड़के को कंडोम देती है. थमसप का ऐड, एलआईसी का वो ऐड जिसमे पांच रुपये के लिए दो दोस्त लड़ते हैं. sprite का वो ऐड जिसमे गर्लफ्रेंड के साथ बैठे लड़के को दूसरी लड़की को देखने के तरीके बताये गए हैं. ऐसी बहुत लम्बी लिस्ट है एड की जिसे देखने में मजा आता है.कई बार हम चैनेल बदल कर उस एड को देखते है.समय के साथ ऐड का टेस्ट भी बदल गया है.
बेहतरीन जानकारी
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